Saturday, December 13, 2008

हमर काकाजी आ हुनक परिवार

हम अपन परिवार क खिस्सा आगू बढ़बैत छी। हमर पितामह रमानाथ झा के पांच का पुत्र आ तीन टा पुत्री रहथिन्ह। सबसे जेठ पुत्र रहथिन्ह मणिनाथ झा, जिनका हम सभ काकाजी कहैत रहियैन्हि। हुनक विवाह भेलैन्हि गंगौली टोल के जयंती देवी सं। हमर पुरान अलबम में एकटा फोटो अछि, जाहि पर बाबा लिखने छथि - बुच्चीस ब्राइड, अर्थात काकाजी (हुनका हमर बाबा आ दाइजी बुच्ची कहैत रहथिन्ह) क कनिया। अपन बड़की काकी के हम सभ बड़की मां कहैत छियैन्हि। काकाजी भानस के विशेषज्ञ छलाह। अपन जीवनकाल में ओ पता नहिं कतेक रास काज कयलैन्हि। मेसरा (रांची) में पेट्रोल पंप क मैनेजर आ रांची विश्वविद्यालय में कैंटीन चलेबा सं लय कय राज दरभंगा क नौकरी तक। हमर काकाजी क एकटा विशेषता छलैन्हि जे ओ नींद में सेहो अपन पैर हिलबैत रहैत छलाह। खूब पान खाइत छलाह। बच्चा सबहक लेल हुनका विशेष आसक्ति रहैन्हि। हमरा सभ के ओ खूब मानैत छलाह। अपन जीवन क अंतिम दिन ओ गाम में बितौलैन्हि।
काकाजी के तीन पुत्र छथिन्ह, जीबू भाइजी, बौआ भाई आ दीपू। जीबू भाइजी आ बौआ भाई दिल्ली में सपरिवार रहैत छथि। जीबू भाइजी क कनिया छथिन्ह गंगौली टोल क। हुनका दू टा बेटी आ एक टा बेटा छैन्हि। बेटी छथिन्ह नुपूर आ पुतरी। नुपूर क विवाह राजेंद्र मिश्र (लालगंज) सं छैन्हि आ पुतरी क धनेश झा (धानेरामपुर) सं। नुपूर के एकटा बेटा प्रियांशु छैक आ पुतरी के एकटा बेटी श्रुति। जीबू भाइजी क बेटा छथिन्ह गिरिजानाथ (मुन्नालाल)। बौआ भाई क विवाह पाहीटोल छैन्हि। हुनका दू टा बेटी गुड़िया (नीतू) आ लाली (रीतू) एवं एक टा बेटा अनूप छैन्हि। दीपू क विवाह गंगौली छैन्हि। हुनका एकटा बेटी रश्मि आ एकटा बेटा विश्वम छैन्हि। काकाजी के एकटा बेटी सेहो रहैन्हि। ओ जीबू भाइजी से पैघ रहैन्हि, लेकिन स्वर्गवासी भय गेलैन्हि।
काकाजी गाम में रहैत छलाह। हुनक जीवन क अंतिम समय बहुत कष्टदायक छलैन्हि। अस्तु 1996 में ओ स्वर्गवासी भय गेलाह।
काल्हि कहब लाल काका क खिस्सा।

Sunday, October 5, 2008

वैद्यनाथ धाम क यात्रा आ सुखद अनुभव

एम्हर बहुत व्यस्त रहलहुं, कारण अखबार क काज बहुत बढ़ि गेल अछि। एही कारण सं पोस्ट नहिं कय सकलहुं। क्षमा प्रार्थी छी।
धर्मपुर आ हमर परिवार क खिस्सा सं अलग एकटा खिस्सा कहैत छी। पछिला मास 25 तारीख कें अखबार क काज सं वैद्यनाथ धाम जयबाक सुअवसर भेटल। मां, पत्नी, छोटकी बेटी आ भातिज सेहो संग रहथि। 40 वर्षक बाद वैद्यनाथ धाम गेल रही। मां आ पत्नी क संग पहिल बेर-खूब उत्साहित छलहुं। भोरे बाबा का दर्शन-पूजा कय मीटिंग में गेलहुं। ओही राति वापस अयबाक छल। मौर्य में जसीडीह सं रिजर्वेशन छल। ट्रेन आयल। सभ गोटा अपन-अपन बर्थ पर जा सूति रहलहुं। बोकारो क बाद निन्न टुटल, तं सूटकेस गायब छल। सबहक कपड़ा, कैमरा क बैग आ पूरा सामान छल। सभ टा उत्साह खत्म भय गेल।
अगिला दिन सांझ में बोकारो सं एक सज्जन, वशिष्ठ जी फोन कयलैन्हि। कहलैन्हि जे हमर सूटकेस हुनकर बस में भेटल अछि। बोकारो सं सूटकेस मंगाओल। खाली हमर कपड़ा, कैमरा क बैग आ हमर अन्य सामान गायब छल। विश्वास नहिं भेल जे एहि घोर कलियुग में सेहो एहन लोक छैक। वशिष्ठ जी कें धन्यवाद देलियैन्हि। संगहि बाबा क दर्शन फेर करबाक संकल्प लेलहुं। देखी कहिया पूरा होइत अछि ई संकल्प।
आइ एतबे। खिस्सा फेर आगू बढ़त।

Tuesday, January 1, 2008

कोना कीनल गेल आओ पढ़ें और सीखें किताब

पीतांबरी बंगाली मिडिल स्कूल में तेसर कक्षा पास कय चारिम क्लास में गेलहुं। नब किताब क सूची भेटल। हिंदी क किताब रहैक आओ पढ़ें और सीखें। बिहार टेक्स्टबुक कारपोरेशन से प्रकाशित एहि किताब क बड़ कमी रहैक। कत्तहु नहिं भेटैत रहैक। मई मास में अर्द्धवार्षिक परीक्षा से ठीक पहिने तक ओ किताब हमरा लग नहिं रहय। हमर सबहक वर्ग शिक्षक छलाह सुजीत दा। पैघ-पैघ दाढ़ी आ एकटा आंखि बंद। स्कूल में सबसे अनुशासित शिक्षक, गणित पढ़बैत छलाह। ओ रोज पुछथि - किताब मिला। एक दिन हमरा भरल क्लास में नील डाउन क दंड भेटल-किताब नहिं रहला क कारणे। बड़ दुख भेल। डेरा जाय बाबा के कहलियैन्हि जे काल्हि बिना किताब के स्कूल नहिं जायब। लाल काका दरभंगा में रहथि। तत्काल ओ रिक्शा पर बैसा कय टावर पर बुक सेंटर लय गेलाह। तहिया काकाजी ओही दोकान में काज करैत रहथि। सभ दोकान में ताकल गेल, मुदा किताब नहिं भेटल। ग्रंथालय, भारती पुस्तक केंद्र आ अन्य दोकान में किताब नहिं रहैक। अगिला दिन लाल काका अपना संग स्कूल लय गेलाह आ सुजीत दा के सभटा वृत्तांत कहलखिन्ह। तखन क्लास में बैसलहुं। ओहि दिन स्कूल सं वापस अयला पर बाबा कहलैन्हि- अहां क किताब आइ सांझ में चल आओत। सांझ में ठाकुर चाचा (श्री टीएन ठाकुर, आइएएएस, संप्रति भारतीय ऊर्जा व्यापार निगम क अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक आ हमर नुनू काका के मित्र) अयलाह। बाबा हुनका संग साइकिल पर टावर पठा देलैन्हि आ भारती पुस्तक केंद्र से हमर किताब कीनल गेल। 1985 में दिल्ली गेल रही, तं ठाकुर चाचा क डेरा आरके पुरम सेहो गेलहुं। हुनका इ गप्प मोन रहैन्हि आ ओ अपन बच्चा सभ कें इ खिस्सा सुनेलखिन्ह। आइयो मोन पड़ैत अछि, तं हंसी लागि जाइत अछि।