Tuesday, January 1, 2008

कोना कीनल गेल आओ पढ़ें और सीखें किताब

पीतांबरी बंगाली मिडिल स्कूल में तेसर कक्षा पास कय चारिम क्लास में गेलहुं। नब किताब क सूची भेटल। हिंदी क किताब रहैक आओ पढ़ें और सीखें। बिहार टेक्स्टबुक कारपोरेशन से प्रकाशित एहि किताब क बड़ कमी रहैक। कत्तहु नहिं भेटैत रहैक। मई मास में अर्द्धवार्षिक परीक्षा से ठीक पहिने तक ओ किताब हमरा लग नहिं रहय। हमर सबहक वर्ग शिक्षक छलाह सुजीत दा। पैघ-पैघ दाढ़ी आ एकटा आंखि बंद। स्कूल में सबसे अनुशासित शिक्षक, गणित पढ़बैत छलाह। ओ रोज पुछथि - किताब मिला। एक दिन हमरा भरल क्लास में नील डाउन क दंड भेटल-किताब नहिं रहला क कारणे। बड़ दुख भेल। डेरा जाय बाबा के कहलियैन्हि जे काल्हि बिना किताब के स्कूल नहिं जायब। लाल काका दरभंगा में रहथि। तत्काल ओ रिक्शा पर बैसा कय टावर पर बुक सेंटर लय गेलाह। तहिया काकाजी ओही दोकान में काज करैत रहथि। सभ दोकान में ताकल गेल, मुदा किताब नहिं भेटल। ग्रंथालय, भारती पुस्तक केंद्र आ अन्य दोकान में किताब नहिं रहैक। अगिला दिन लाल काका अपना संग स्कूल लय गेलाह आ सुजीत दा के सभटा वृत्तांत कहलखिन्ह। तखन क्लास में बैसलहुं। ओहि दिन स्कूल सं वापस अयला पर बाबा कहलैन्हि- अहां क किताब आइ सांझ में चल आओत। सांझ में ठाकुर चाचा (श्री टीएन ठाकुर, आइएएएस, संप्रति भारतीय ऊर्जा व्यापार निगम क अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक आ हमर नुनू काका के मित्र) अयलाह। बाबा हुनका संग साइकिल पर टावर पठा देलैन्हि आ भारती पुस्तक केंद्र से हमर किताब कीनल गेल। 1985 में दिल्ली गेल रही, तं ठाकुर चाचा क डेरा आरके पुरम सेहो गेलहुं। हुनका इ गप्प मोन रहैन्हि आ ओ अपन बच्चा सभ कें इ खिस्सा सुनेलखिन्ह। आइयो मोन पड़ैत अछि, तं हंसी लागि जाइत अछि।