Sunday, December 9, 2007

ओ मनहूस दिन (1971 क नौ दिसंबर)

आइ बाबा क पुण्यतिथि थिकैन्हि. अजुके दिन छल, 1971 ईस्वी क. दाइजी गाम में छलीह. बाबा भोरे उठलाह. फूल तोड़ि कय अयलहुं, त कहलैन्हि- राजा, हमर छड़ी के रौद में दय दियौक. हम पुछलियैन्हि- कनिये तेल लगा दिय. बाबा क अनुमति भेटल, तं छड़ी में तेल लगा ओकरा रौद में राखि देलियैक. हमरा बूझल छल जे आइ बाबा के गाम जयबाक छैन्हि-10 बजिया ट्रेन सं. छब्बी दीदी, छोटी आ बेबी करीब आठ बजे नौ नंबर में आबि गेल रहथि. बाबा नहा कय पूजा पर बैसि गेलाह. हम इम्हर-ओम्हर करय लगलहुं. बाबा क पूजा खत्म भेलैन्हि, तं च्यवनप्राश खयबा ले हुनका लग गेलहुं. बाबा पहिने हमरा च्यवनप्राश देलैन्हि आ कहलैन्हि - गाम सं घूरब तं गणित क पाठ सब सूनब. हम छठा क्लास में पढ़ैत रही-पीतांबरी बंगाली मिडिल स्कूल में. वार्षिक परीक्षा निकट रहय, तैं बाबा क संग गाम नहिं जयबाक रहे. बाबा एकटा अनुवाद सेहो देने छलाह-अखबार सं. अंग्रेजी से हिंदी में. बाबा सतुआ आ रोटी-तरकारी खा कय पान खेलैन्हि. सामान तैयार छलैन्हि. माछ सेहो. पाठक जी रिक्शा अनलैन्हि. बाबा स्टेशन गेलाह. सत्ती दीदी कालेज चल गेलीह आ जीबू भाइजी स्कूल. बल्लू भाइजी कालेज. डेरा पर हम, अपन दीदी, संजू, रानी, बौअन आ नीतू छलहुं. नोकर में सिंहेश्वर. ताबत टेलीफोन (नंबर 2197) कं घंटी बाजल. हम फोन उठौलहुं. ओम्हर से आवाज आयल - इ प्रोफेसर साहब का डेरा है. हम जवाब देलियैक-हां. ओम्हर से पुछलक - अहां के बजै छी. हम कहलियैक-राजा. फेर प्रश्न कयलक-अहां प्रोफेसर साहब के के छियैन्हि. हम जवाब देलियैक-पोता. ओम्हर से कहलक - प्रोफेसर साहब के मोन खराब भय गेलैन्हि अछि. हम स्टेशन से बजैत छी. फोन पटकि दौड़लहुं. अपन दीदी अंगना बरंडा पर छलीह. बाबा क घर से बाहर बरंडा आ काकाजी क घर पार करबा में तीन बेर खसलहुं. चिचिया कय अपन दीदी के कहलियैन्हि आ सीधे अंगना बला केबाड़ से बाहर अयलहुं. कल पर सिंहेश्वर दतमनि करैत छल. ओकरा कहलियैक आ दौड़ गेलहुं स्टेशन दिश. सैंडो गंजी आ हाफ पैंट पहिरने. कोनो होश नहिं छल. हम आगू, सिंहेश्वर पाछू. स्टेशन पर पुछलियैक, तं पता चलल जे बाबा के अस्पताल पठाओल गेलैन्हि अछि. हम हताश भय घुरि डेरा अयलहुं. ताबत नवीन चाचा आ सुशील पाठक डेरा पर आबि गेल रहथि. हम इम्हर से ओम्हर हताश भय टहलैत रही. हाफ पैंट आ सैंडो गंजी पहिरने. करीब आधा घंटा बाद बरंडा पर से देखलियैक, एकटा एंबेसडर गाड़ी गेट से भीतर भेलैक. नीचा दौड़ल गेलहुं. ताबत ओ गाड़ी आबि पोर्टिको क बाहरे रुकि गेल. छब्बी दीदी कनैत रहथि. बाबा पछिला सीट पर पड़ल रहथि. हम सीधे पछुआर दिश दौड़लहुं आ लालकोठी में दादा बाबा (तंत्रनाथ झा) के खबरि देबा लय गेलहुं. दादा बाबा खुजले देह बाहर में रहथि. हुनका कहलियैन्हि- बाबा. एतबा कहि फेर वापस दौड़लहुं. ताबत बाबा के धरती पर सुता देल गेल रहैन्हि. हम जोर सं कनैत रही. अपन दीदी के पकड़ि कय. ताबत ओझा भोगनाथ झा पहुंचलाह. जीबू भाइजी अयलाह, भीड़ बढ़य लागल. बाबा क घड़ी चलैत छलैन्हि, मुदा बाबा शांत भय भूमि पर सुतल छलाह.
एकर बाद की सभ भेलैक, सभ टा ओहिना मोन अछि. कोना दिन भरि बीतल. माला पिसिया सभ बच्चा के लय कय लाल कोठी गेलीह आ खेनाइ खुऔलैन्हि. हम नौ नंबर क गेट से बाबा क पार्थिव शरीर लग तक कतेक चक्कर लगबैत रही. पिसी मां के लय कय बूआ काका पटना सं अयलाह. ओझा भोगनाथ झा गाम सं दाइजी के लय कय अयलाह. बाउ बाबा सेहो अयलाह. रांची में ट्रंक काल से लाल बाबा के खबरि देल गेल. राति में बाबा के उठा कय सभ लय गेल. ताबत काकाजी आ लाल काका कटिहार सं पहुंचलाह.
सभटा गप्प मोन पड़ि रहल अछि. तहिया नहिं बुझैत छलियैक जे हमर बाबा की छलाह. आइ ओ मोन पड़ैत छथि, तं बुझाइत अछि जे हमर बाबा वास्तव में की छलाह. आइयो जखनि कखनो कोनो दुविधा बा अनिर्णय क स्थिति अबैत अछि, बाबा मोन पड़ैत छथि आ फेर अपन काज में जुटि जाइत छी. जाबत बाबा लग रही, लखन जी, पुरुषोत्तम बाबू, जयधारी बाबू, जगदीश मिश्र, विश्वेश्वर जी, नंदनंदन जी, नवीन चाचा, बालकृष्ण बाबू, डा टीएन झा, दुर्गानंद बाबू आ पता नहिं कतेक लोक सभ लेल हम विशिष्ट छलियैक. कारण छल बाबा क सबसे दुलारू. बाबा क कलम सं लिखब आ बाबा जेहन तुराई ओढ़ताह, ओहने तुराई ओढ़ब. ओहिना नारायण तेल के मालिश होयत. ओहिना सिरमा दिश चौकी क नीचा में ईंटा राखल जायत. ओहने जूता पहिरब आ ओहने थारी में भोजन करब. जिद्दी ततबे कि बाबा के तंग कय दैत छलियैन्हि. खिहाड़ि कय बाबा पकड़बैत छलाह आ कल क तर में बैसा कय माथ पर पानि दैत छलाह. हकमैत बाबा, मुदा तत्काल फेर पुरान रूप में.
आइ एतबे. फेर कहब बाबा क खिस्सा.

1 comment:

Anonymous said...

very good remembrance, bhaijee. you recaptured all. very touchy!!

suman.